गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

खेल का मैदान

मेरे घर के सामने था एक मैदान
बारिशों के बाद इसमे उग आती थी
लम्बी लम्बी घास
उन दिनों बच्चों की गेंद
अक्सर गुम हो जाती थी वहां
जब घास कटती
बच्चे तलाश में निकल जाते
अपनी खोई गेंद की

कभी कभार
मैदान के आस-पास निकल आते थे सांप
चूहों के बिलों से आबाद रहता था मैदान
माएं डरती थीं बच्चों को मैदान में भेजने से
लेकिन बच्चे थे की मौका मिलते ही आ जुटते थे यहीं

बच्चों के खेल से आबाद रहता था मैदान

यह जो खड़ी है बहु मंजिला इमारत
जिसके पीछे हमारे घर छुपे
सहमे से खड़े हैं
ठीक यहीं
इसी इमारत के नीचे था
वह मैदान
जो हमारे बच्चों की याद में
अब भी है उतना ही जीवंत