बंद आँखों में सपने थे
चौड़े कन्धों पर डाल
अपनी देह का भार
सपनीली उड़ान में उसने पंख नहीं खोले थे
हवा से भी हल्की
खुशबू से भी भीनी
शहद से भी मधुर
प्रेम सी झीनी
जाने कैसी थी वह
सपनों में डूबी
पगली सी
छू भर लेने से पिघल जाती
फूँक भर से उड़ जाती
बिखर जाती नज़र भर में ...