शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

उसका जाना

वह एक जंगल में गया

जो बाहर से बीहड़ था

अंदर से बेहद सुकुमार

वहां जगमगाती रोशनियां थीं,

रंग थे, फूलों वाली झाड़ियां थीं,

सम्मोहक तंद्रिल संगीत था

वह गया

कि उतरता चला गया

उसकी स्मृतियों में पीछे छूट चुके हम थे

जिनके बाल बिखरे थे

जिनके पैरों पर धूल जमी थी

जो कई-कई दिनों में नहाते थे

पलट कर उसने देखा नहीं

हम देखते रहे उसका जाना

एक बीहड़ में

खौफनाक जानवरों के बीच

हमें देख हिलाते हाथों की ऊर्जा उसकी नहीं थी।

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