रविवार, 20 मार्च 2011

'क्या तुमने चाँद को देखा?'

'क्या तुमने चाँद को देखा?'
'होल्ड करो, मैं बालकोनी में जा कर देखती हूँ.'
'आज उसका रंग तुम्हारी पिंडलियों सा चमक रहा है.'
'काश की हम अपने अपने शहर से झुज्झा डालते और डोर को थाम झूला झूलते और इस तरह कहीं बीच में एक दूसरे को छू जाते. '