सोमवार, 27 जून 2011

इंतजार

तुम्हारे इंतज़ार में खड़ी थी मैं दरवाज़े पर
हाथों में सजा रखा था थाल
सुर्ख लाल था सिन्दूर का रंग
चावल के दानों में थी बरकत कि दुआएं
ताम्बे के लोटे में पानी
ताउम्र तुम्हारे जीवन में शीतलता की कामना के लिए भरा था
मिठास कि दुआ के साथ रखी थी थाली में मिश्री कि डली
तुम थे कि आते ही न थे
आँखे जुड़ा जाती थी राह देखते देखते
पर तुम थे कि आते ही न थे

वह रोजाना गुज़रता था उस दरवाज़े के आगे से
देखता और मुस्कराता
कभी कभी कुछ देर ठहर जाता
कुछ बातें करता
और चल देता इस दुआ के साथ कि
जल्द ही पूरा होगा यह इंतजार
उसने इंतजार के उस समय को
अपनी बातों से जीवन दिया बार बार
कई बार कहा
थक गई होगी
जाओ सो लो कुछ देर
मैं खड़ा रहूँगा यहाँ
उसका साया भी नज़र आया तो
नींद में पुकार लूँगा तुम्हें
कई बार बना लाता था चाय
हम तुम्हारी बातें करते
चाय कि चुस्कियों के साथ करते रहे तुम्हारा इंतजार
कितने दुःख कितने सुख
हमने बांटे इस तरह साथ साथ

मैं उस दिन भी खड़ी थी उसी तरह
वह उसी तरह गुज़र रहा था
दरवाज़े के सामने से
बस उस दिन वह आया
और हो रहा खड़ा ठीक सामने
कुछ कहा नहीं
बस देखता रहा आँखों में
मैंने सुर्ख लाल सिन्दूर से रंग दिया उसका माथा
चावल के दानों को मुट्ठी में भर उछाल दिया उसके ऊपर
और ठंडा पानी उसे पीने के लिए दिया
उसके गले में दाल दी वे फूल मालाएँ
जिन्हें हर सुबह ताज़ा फूलों को चुन कर बनाया था मैंने
यह जो मिठास है मिश्री की
बस घुलती ही जा रही है
इस मिठास के साथ बढती ही जाती है तुम्हारी याद

अब भी हमारी निगाहें दरवाज़े पर लगी हैं
अब भी हम करते हैं इंतजार
तुम न भी आओ तो कोई बात नहीं
जहाँ भी रहना खुश रहना
बस यह मत भूलना
कि दो जोड़ी आँखें अब भी करती हैं तुम्हें याद
और करती हैं उसी शिद्दत के साथ तुम्हारा इंतजार