मैं अक्सर सोचती हूँ
उन तमाम संभावनाओं के बारे में
जो तुम्हें लौटा लाये मेरी ओर
शायद
मेरा गुस्सा नहीं ला सका तुम्हें वापस
जबकी अच्छी तरह जानते हो तुम कि
बेहद आहात थी मैं उस वक़्त
जब लावे की तरह फूट पड़ता था गुस्सा बात बात पर
आंसू जो रोके नहीं रुकते थे पलकों के भीतर
उन्होंने भी तुम्हें दूरतर ही किया
नहीं यह सोच कर नहीं बहते थे वे कि
तुम्हें करीब लाया जाये
या कि
चले जाओगे तुम दूर इन्हें देख कर
बस एक सैलाब सा उमड़ता था आँखों के भीतर
और पलकों की बाड़
बाँध नहीं पाती थी उन्हें
सब कुछ को भुला कर
एक नई शुरुआत की चाह के साथ
तुम्हें भर लेना चाहा बाँहों में
पर तुम साँस नहीं ले पाते हो वहां
खुद को छुपा लेना चाहा
तुम्हारे बीहड़ में
पर वहां पसरा सन्नाटा
मुझे भी कहाँ ठहरने देता है वहां
इस शहर में
जहाँ रोजाना गुज़रना होता है
भारी भरकम ट्रकों और बसों के बीच से
रेल का फाटक पार करना होता है हर दिन
गाड़ियाँ बहुत बेरहमी से चलती हैं
सबको जल्दी है कहीं पहुँचने की
डर जाती हूँ मैं
कभी भी आ सकती हूँ किन्ही बेरहम पहियों के नीचे
मुझे नहीं जल्दी कही भी पहुँचने की
उन क्षणों में मुझे तुम याद आते हो
और पूछती हूँ खुद से ही
क्या मृत्यु तुम्हें लौटा लायेगी मेरी ओर प्रिय