मंगलवार, 30 अगस्त 2011

बच्चे

१.
वे रंगों को बिखेर देते हैं कागज पर
और तलाशते रहते हैं उनमे
औघड रूपाकार

सब चीजों के लिए
कोई नाम है उनके पास

हर आकार के पीछे
कोई कहानी
बनती बुनती रहती है उनके मन में

कभी पूछ कर तो देखो
यह क्या बनाया है तुमने
झरने की तरह बह निकलती हैं बातें

नही, प्रपात की तरह नही
झरने की तरह
मीठी
मन्थर
कहीं थोडा ठहर जाती
और फिर
जहाँ राह देखती
उसी दिशा मे बह निकलती

भाषा जहाँ कम पड़ने लगती है
उचक कर थाम लेते हैं कोई सिरा
मानो
गिलहरी फुदक कर चढ़ गई हो
बेरी के झाड पर

उनसे जब बात करो
तो बोलो इस तरह
जैसे बेरी का झाड
बढा देता है अपनी शाख को
गिलहरी की तरफ
वे
फुदक कर थाम लेंगे
आपके सवालों का सिरा
पर जवाब की भाषा
उनकी अपनी होगी

२.
उसने अपनी उँगलियों के पोरों को
डुबोया हरे रंग मे
और
खींच दी हैं लकीरें
हृदय पर

उसने गाढ़े नीले से
रंग दिया है फलक को

सुर्ख लाल रंग को
बिखेर दिया है उसने
घर के आँगन मे

पीले फूलों से ढक दिया है उसने
आस पास की वनस्पतियों को
उसे हर बार चाहिए
नया सफैद कागज
जिसे हर बार
सराबोर कर देना चाह्ता है वह रंगों से

मेरा बच्चा रंगरेज़

३.
धूप और बारिश के बीच
आसमान मे तना इन्द्रधनुष हैं
मेरे बच्चे

आच्छादित है फलक
उनकी सतरंगी आभा से
जिसके आर पार पसरा है
हरा सब ओर
उनके पीछे
कहीं ज्यादा गाढा हो जाता है
आसमान का नीला
कहीं ज्यादा सरसब्ज हो जाती है धरती

शनिवार, 20 अगस्त 2011

कितने तो रंग हैं

हरे के कितने तो रंग हैं
एक हरा जो पेड की सबसे ऊँची शाख से झाँकता है
एक जिसे छू सकते हैं आप
बढ़ाते ही अपना हाथ
एक दूर झुरमुटों के बीच से दिखाई देता है
एक नयी फूटती कोंपल का हरापन है
एक हरा बूढ़े पके हुए पेड़ का
एक हरा काई का होता है
और एक
पानी के रंग का हरा

कितने ही तो हैं आसमानी के रंग
रात का आसमान भी आसमानी है
सुबह के आसमान का भी नहीं है कोई दूसरा रंग
ढलती साँझ का हो
या हो भोर का आसमान
अपनी अलग रंगत के बावजूद
आसमानी ही होता है उसका रंग

मन के भी तो कितने हैं रंग
एक रंग जो डूबा है प्रेम में
एक जो टूटा और आहत है
एक पर छाई है घनघोर निराशा
फिर भी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ता
एक तलाशता है खुशी
छोटी छोटी बातों में
छाई रहती है एक पर उदासी फिर भी
एक मन वो भी है
जिसे कुछ भी समझ नहीं आता है
जो कहिं सुख और दुख के बीच में राह भटका है

गुरुवार, 18 अगस्त 2011

यह समय गुमराह करने का समय है

यह समय गुमराह करने का समय है
आप तय नहीं कर सकते
कि आपको किसके साथ खड़े होना है
अनुमान करना असम्भव जान पड़ता है
कि आप खड़े हों सूरज की ओर
और शामिल न कर लिया जाए
आपको अन्धेरे के हक में

रंगों ने बदल ली है
अपनी रंगत इन दिनो
कितना कठिन है यह अनुमान भी कर पाना
कि जिसे आप समझ रहे हैं
मशाल
उसको जलाने के लिए आग
धरती के गर्भ में पैदा हुई थी
या उसे चुराया गया है
सूरज की जलती हुई रोशनी से
यह चिन्गारी किसी चूल्हे की आग से उठाई गई है
या चिता से
या जलती हुई झुग्गियों से
जान नहीं सकते हैं आप
कि यह किसी हवन में आहूती है
या आग में घी डाल रहे हैं आप
यह आग कहीं आपको
गोधरा के स्टेशन पर तो
खड़ा नहीं कर देगी
इसका पता कौन देगा

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

अपना नाम

तुम्हें बहुत सारे प्यार के साथ

जब लिखती हूँ खतों के अंत में अपना नाम

अपने इस चार अक्षर के नाम से

होने लगता है प्यार


जब सुनती हूँ फ़ोन पर

तुम्हारी डूबती आवाज़ में

पुकारा जाना इस नाम को

लगता है मुझे

कितना सुन्दर है यह नाम

इसे इसी तरह जुड़ा होना था

मेरे होने से,

इसी तरह पुकारा जाना था इसे तुम्हारे द्वारा


चालीस की उम्र में

अपने नाम से इस तरह पड़ना प्रेम में

कब सोचा था

यह भी होना है

इस जीवन में

पर अब यह जो है

इसके होने से

होने लगता है

अपने होने से भी प्यार