बुधवार, 28 दिसंबर 2011

धावक

नींद से जागती हूँ
जैसे गोली छूटती है बन्दूक से

सोती हूँ जैसे धावक बैठा हो तैयार
दौड के लिए

शुरू होता है दिन
एक ऐसी दौड की तरह
जिसमे जीत का लक्ष्य नहीं

एक ऐसी मैराथन जिसके लिए
नहीं है सामने कोई धावक
थामने को मशाल
किसी भी निश्चित दूरी के बाद

अपनी मशाल को
अपने हाथों मे थामे मजबूती के साथ्
खत्म होती है दौड
हर रात
ढ़ती हूँ फिर नींद के आगोश में

शनिवार, 10 दिसंबर 2011

रिक्त स्थानों की पूर्ति करो

बचपन से सिखाया गया हमें

रिक्त स्थानों की पूर्ति करना

भाषा में या गणित में

विज्ञान और समाज विज्ञान में

हर विषय में सिखाया गया

रिक्त स्थानों की पूर्ति करना

हर सबक के अन्त में सिखाया गया यह

यहाँ तक कि बाद के सालों में इतिहास और अर्थशास्त्र के पाठ भी

अछूते नहीं रहे इस अभ्यास से


घर में भी सिखाया गया बार बार यही सबक

भाई जब न जाए लेने सौदा तो

रिक्त स्थान की पूर्ति करो

बाजार जाओ

सौदा लाओ


काम वाली बाई न आए

तो झाड़ू लगा कर करो रिक्त स्थान की पूर्ति


माँ को यदि जाना पड़े बाहर गांव

तो सम्भालो घर

खाना बनाओ

कोशिश करो कि कर सको माँ के रिक्त स्थान की पूर्ति

यथासम्भव

हालांकि भरा नहीं जा सकता माँ का खाली स्थान

किसी भी कारोबार से

कितनी ही लगन और मेहनत के बाद भी

कोई सा भी रिक्त स्थान कहाँ भरा जा सकता है

किसी अन्य के द्वारा

और स्वयम आप

जो हमेशा करते रहते हों

रिक्त स्थानों की पूर्ति

आपका अपना क्या बन पाता है

कहीं भी

कोई स्थान


नौकरी के लिए निकलो

तो करनी होती है आपको

किसी अन्य के रिक्त स्थान की पूर्ति


यह दुनिया एक बडा सा रिक्त स्थान है

जिसमें आप करते हैं मनुष्य होने के रिक्त स्थान की पूर्ति

और हर बार कुछ कमतर ही पाते हैं आप स्वयं को

एक मनुष्य के रूप में

किसी भी रिक्त स्थान के लिए

मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

मरुस्थल की बेटी

क्या तुम्हे याद हैं
बीकानेर की काली पीली आन्धियाँ

उजले सुनहले दिन पर
छाने लगती थी पीली गर्द
देखते ही देखते स्याह हो जाता था
आसमान

लोग घबराकर बन्द कर लेते थे
दरवाज़े खिड़कियाँ
भाग भाग कर सम्हालते थे
अहाते मे छूटा सामान

इतनी दौड भाग के बाद भी
कुछ तो छूट ही जाता था जिसे
अन्धड़ के बीत जाने के बाद
अक्सर खोजते रहते थे हम
कई दिनों तक
कई बार इस तरह खोया सामान
मिलता था पडौसी के अहाते मे
कभी सडक के उस पार फँसा मिलता था
किसी झाडी में
और कुछ बहुत प्यारी चीजें
खो जाती थीं
हमेशा के लिए

मुझे उन आन्धियों से डर नहीं लगता था
उन झुल्सा देने वाले दिनों में
आँधी के साथ् आने वाले
हवा के ठंडे झोंके बहुत सुहाते थे
मैं अक्सर चुपके से खुला छोड देती थी
खिड़की के पल्ले को
और उससे मुंह लगा कर बैठी रहती थी आँधी के बीत जाने तक
अक्सर घर के उस हिस्से मे
सबसे मोटी जमी होती थी धूल की परत
मैं बुहारती उसे
अक्सर सहती थी माँ की नाराज़गी
लेकिन मुझे ऐसा ही करना अच्छा लगता था

बीते इन् बरसों में
कितने ही ऐसे झंझावात गुज़रे
मैं बैठी रही इसी तरह
खिड़की के पल्लों को खुला छोड
ठण्डी हवा के मोह मे बंधी

अब जब की बीत गई है आँधी
बुहार रही हूँ घर को
समेट रही हूँ बिखरा सामान
खोज रही हूँ
खो गई कुछ बेहद प्यारी चीजों को
यदी तुम्हे भी मिले कोई मेरा प्यारा सामान
तो बताना ज़रूर

मैं मरुस्थल की बेटी हूँ
मुझे आन्धियों से प्यार है
मै अगली बार भी बैठी रहूँगी इसी तरह
ठण्डी हवा की आस में

सोमवार, 5 दिसंबर 2011

मन करता है

मन करता है
धरतीनुमा इस गेंद को
लात मारकर लुढ़का दूं

मुट्ठी में कर लूं बन्द
सुदूर तक फैले इस आसमान को
या इसके कोनों को समेटूं चादर की तरह
और गांठ मार कर रख दूं
घर के किसी कोने में

नदियों में कितना पानी
यूं ही व्यर्थ बहता है
इसे भर लूं मटकी में
और पी जाऊँ सारा का सारा

इन परिन्दों के पंख
क्यूं न लगा दूं
बच्चों की पीठ पर
और कहूँ उनसे
उड़ो
भर लो उन्मुक्त उड़ान
चीर दो इस नभ को
इस कायनात में कोई भी सुख ऐसा न रहे
जिसे तुम पा न सको
कोई भी दुख ऐसा न हो
जिसकी परछायी छू भी सके तुमको

बहुत अदना सी है
मेरी पहचान
बहुत सीमित है सामर्थ्य
एक माँ के रूप में
लेकिन कोई भी ताकत इतनी बड़ी नहीं
जो रोक सके उन्हें
इस जीवन को जीने से
भरपूर
मेरे रह्ते