बुधवार, 28 नवंबर 2012

जन्म की कथा

माँ बताती थी 
आसमान से घर की बाखर में गिरी थी मैं 
ऐन माँ की आँखों के सामने 
और उन्होंने गोद में उठा लिया था मुझे 

जन्म की कथा तो माँ ही जानती हैं 
कितने ही आसमानों से गिरी हूँ जाने कितनी बार 
माँ ने हर बार भर लिया बाँहों में 
दिया दुलार 
मेरे लिए यह दुनिया 
घर की बाखर है 
जिसमे लगाती हूँ दौड़ निःसंकोच 
खेलती हूँ, हंसती हूँ गाती हूँ 
आसमान को छूने की जिद ठाने हूँ 
पिता सीढी ले आते हैं 
माँ साया बन साथ रहती है 

मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012

फितरत

सड़क पर चले जा रहे हों आप 
और उड़ता हुआ कबूतर कर दे 
पीठ पर बींट तो क्या करेंगे आप 
यही न की कोई कपड़ा या कागज़ खोज
पोंछ लेंगे उसे 
और चल देंगे अपनी राह 

घर के बाहर खड़ी गाय 
जिसे अभी खाने को रोटी दी आपने 
वह कर जाये घर के आगे गोबर 
या खा जाये वह पौधा 
जिसे आपने बहुत प्यार से लगाया था 
और जिसमे अभी फूल खिलने ही को था 
तब क्या करेंगे सिवाय इसके 
की गोबर को दरवाज़े के आगे से हटायेंगे 
और पौधे की थोड़ी पुख्ता 
करेंगे सुरक्षा 

गली का कुत्ता 
जिसे आप रोज़ दुलारते हैं 
कर ही जाता है कई बार 
बच्चों की गेंद पर पेशाब 
तब कुत्ते को समझाने तो नहीं जाते आप 
समझाते बच्चों को ही हैं 
और गेंद को कर लेते हैं पानी से साफ़ 

आपकी अपनी फितरत है 
और दुनिया की अपनी 
इसमें कैसी शिकायतें 
जिसे जो आता है 
मनुष्य भी वही करता है 

शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2012

तुम नहीं हो

अच्छा ही है कि तुम नहीं हो 
तुम्हारी याद तुम्हारे होने से कहीं ज्यादा गहरी है 

तुम साथ् होते तो 
चीजें  अच्छी  ही होतीं 
लेकिन 
गर तुम नहीं हो साथ् 
तब भी बेहतर ही होंगी बातें 
कि दोगुनी ताकत 
और कई गुणा हिम्मत, मेहनत 
और प्यार के साथ् 
बनाउंगी मैं उन्हें ऐसा 
कि जान सको तुम 
ठुकराया जिसे तुमने 
खोने के लायक 
नहीं था कुछ भी उसमें 



गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

१ . 
सच् होने लगते हैं ख्वाब

मैं कदम बढाती हूँ 
थोडा सा और आगे चली जाती हूँ 
मैं बाहें पसारती हूँ 
और सब कुछ सिमटता चला आता है करीब 
मैं निगाह उठाती हूँ 
और उडने लगती हूँ 
मैं ख्वाब देखती हूँ 
और सच् होने लगते हैं वे 
  
२. 
रिश्तों के नाम 
ज़रूरी तो नहीं के सब चीजों के नाम हुआ ही करें 
बहुत सारी चीजें बातें बिना नाम के भी होती हैं 
मह्सूसियत की तरह  
जैसे हर सुबह का नहीं होता अलग अलग नाम 
लेकिन हर सुबह होती है अलग हर दूसरी सुबह से 

३. 
यह दुनिया
यह दुनिया जैसी भी बन पाई है 
किसी एक अकेले कारीगर की कारस्तानी से नही बनी है 
हम सभी के पुरखों ने किया है अपनी अपनी तरह से योगदान 

हमारे कंधों पर सदियों का संचित बोझ है 
सदियों का संचित ज्ञान है हमारी झोली मैं 
सदियों के संचित रिश्तों ने गढा है हमे 
अच्छा या कम अच्छा जैसा भी 

यह जिद बेमानी है के रातो रात बदल देंगे हम इसकी शक्लो सूरत 
जितनी भी आजादी और जितने भी बन्धन आए है हमारी झोली में 
सबका है अपना इतिहास

गुरुवार, 27 सितंबर 2012

ख्वाब सोए हैं जहाँ


थोडा धीरे से आना इस तरफ 
यहाँ मेरे ख्वाब सो रहे हैं 
अभी थपकी देकर सुलाया है उन्हें
कच्ची नींद में न जगाना
बहुत लम्बी यात्रा की थकन है 
सुस्ता लेने दो कुछ देर 
अभी उनके हिस्से 
बाकि हैं बहुत से काम
जब जागेंगे इस बार 
नया करघा बनाना है 
इस बार कुछ नए रंग मंगाने हैं 
कुछ महीन करनी है बुनाई 
थोडा और पारङ्गत होना है उन्हे इस बार 
बुनना है और बहुत से नए ख्वाब 

बुधवार, 11 जुलाई 2012

नीले सूरजमुखी


फूल चुन रही थी वह जब एक नन्हा सा काँटा धंस गया था उसके हाथ पर. इसके सिरे पर एक बेहद खूबसूरत फूल था, सूरजमुखी के जैसा. उसे फूल इतना सुन्दर लगा कि वह उसे हि निहारती रही और भूल गई कि जिस जगह वह धन्सा है वहाँ उसे तकलीफ़ हो रही है ... उसे यह सोच कर और भी अच्छा लगता कि जब वह लिख रही होती थी उसके हाथ के ऊपर एक सुन्दर सा फूल सजा रहता था. दर्द था कि बढ्ता जाता था लेकिन मोह ऐसा था कि उसे निकालने ही न देता था. धीरे धीरे कांटे के आस पास का हाथ नीला पड़ने लगा लेकिन फूल का सौन्दर्य उसके रक्त से सींचे जाने के कारण बढ्ता ही जाता था. उसने सोचा कुछ दिन लिखने को रोका जा सकता है... फूल कहीं मुर्झा न जाए यह फिक्र उसे किसी भी दूसरी बात से ज्यादा परेशान रखने लगी. वह सोती तो हाथ को अलग से तकिये पर रख लेती. फूल का रंग पीले से नीला होने लगा था, लेकिन वह उसे हर तरह से और ज्यादा सुन्दर लगता... दोस्तों ने कहा, देखो अब बहुत हुआ इसे निकाल फेन्को वर्ना तकलीफ़ बहुत बढ़ जाएगा... लेकिन उसकी दीवानगी कहाँ कम होती थी... धीरे धीरे पूरा हाथ नीला पड गया.... फूल के चारो ओर मवाद भरने लगा.... और एक दिन फूल उसके बीच छुप गया.... अब वह उसके हाथ मे ज़हर फैला रहा था, लेकिन वह इस उम्मीद मे थी कि एक दिन फिर हाथ पर उसी जगह नया फूल उगेगा और यह सारी तकलीफ़ मिट जाएगी.... दोस्तों ने सोचा उसे मनोचिकित्सक के पास ले जाएँ या सर्जन के पास जो इस हाथ को उसकी देह से अलग करे ताकी वह फिर से सामान्य इन्सान की तरह जी सके... लेकिन अजीब जिद्दी थी वह लड़की .... आखिर एक दिन जहर सारे शरीर मे फैल गया... मृत्यु शैया पर उसने ख्वाहिश की मुझे उसी जगह दफन करना जहाँ से यह फूल मैने पाया.... दोस्तों ने उसकी इस आखिरी ख्वाहिश का भी ख्याल रखा  ... जैसा कि वे जीवन भर उसके साथ् करते आए थे... लोगों ने देखा कि कुछ हि दिनो बाद उस जगह नीले सूरजमुखी के फूल उगे थे....  

-- 
Devyani 

शनिवार, 31 मार्च 2012

कुछ देर ठहरना

यह किसकी आहट है
इतनी महीन
मानो सहला रही हो कानों को
इतनी शिद्दत
मानो खींच रहा हो चुम्बक लोहे को

प्यार क्या यह तुम हो
यह किस रंग मे चले आ रहे हो तुम
थोडा ठहरो
अभी तो बहुत पडे हैं बाकी घर के काम
थोडा मोहलत देना संवरने को भी इस बार
जाने कब् से खो गई है जूडे की पिन
कब् से नहीं देखा है आईना जीभर
अभी तो तवे पर रोटी जलने को है
अभी तो भरा नही है मटके में पानी
कहीं तुम बहुत जल्दी में तो नही हो
थोडा रुकना वहीं
लौट न जाना यूं ही
कि मैं जुटा लूं थोडा साहस
एक गहरी सांस लूं और खो जाऊं इस तरह
कि छूट न जाए यह साथ्
फिर कहीं इस बार

तुम जब खो जाते हो
बावरी सी भटकती हूँ मैं
तुम जब होते हो आस पास
मैं जुटाती रहती हूँ सामान
तुम्हे कहाँ रखूं
कैसे सहेजूं

क्या तुम गुल्दस्ते में पानी की तरह रहना पसंद करोगे
या चाहोगे जूडे में फूल की जगह
यदि मैं कर लूं बन्द तुम्हें पलकों में
तुम रुकना वहाँ कुछ देर
कि बन्दी नही बनाना चाहती हूँ मैं तुम्हें
बस ओट में कर लेना चाहती हूँ कुछ देर
कि तुम्हारे होने से सुन्दर बनती है धरती
और मुझे प्यार है इस सुन्दर धरती से
जिस पर मेरे बच्चों को करना है
उगते हुए सूरज का स्वागत्
अनन्त के पार तक भी

मंगलवार, 17 जनवरी 2012

इस तरह मत टूटना

मुरझाना तो इस तरह जैसे
मुरझाते हैं अनार के फूल
एक नए फल को जन्म देते हुए
जो भरा हो असंख्य सुर्ख लाल रसीले दानों से

झरो तो इस तरह जैसे
झरते हैं हारसिंगार के फूल मुंह अन्धेरे
धरती पर बिछा देते हैं चादर
जिन्हें चुन लेती हूँ मैं
सुबह सुबह

टूटना तो इस तरह जैसे
टूटता है बीज
जब जन्म लेता हैं नया अंकुर
जीवन की सम्भावना लिए अपार

गिरना किसी झरने की तरह
सर सब्ज कर देना धरती

सूखे पत्ते की तरह मत झरना
इस तरह मत टूटना
जैसे टूटता है हृदय प्रेम में