मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012

फितरत

सड़क पर चले जा रहे हों आप 
और उड़ता हुआ कबूतर कर दे 
पीठ पर बींट तो क्या करेंगे आप 
यही न की कोई कपड़ा या कागज़ खोज
पोंछ लेंगे उसे 
और चल देंगे अपनी राह 

घर के बाहर खड़ी गाय 
जिसे अभी खाने को रोटी दी आपने 
वह कर जाये घर के आगे गोबर 
या खा जाये वह पौधा 
जिसे आपने बहुत प्यार से लगाया था 
और जिसमे अभी फूल खिलने ही को था 
तब क्या करेंगे सिवाय इसके 
की गोबर को दरवाज़े के आगे से हटायेंगे 
और पौधे की थोड़ी पुख्ता 
करेंगे सुरक्षा 

गली का कुत्ता 
जिसे आप रोज़ दुलारते हैं 
कर ही जाता है कई बार 
बच्चों की गेंद पर पेशाब 
तब कुत्ते को समझाने तो नहीं जाते आप 
समझाते बच्चों को ही हैं 
और गेंद को कर लेते हैं पानी से साफ़ 

आपकी अपनी फितरत है 
और दुनिया की अपनी 
इसमें कैसी शिकायतें 
जिसे जो आता है 
मनुष्य भी वही करता है 

शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2012

तुम नहीं हो

अच्छा ही है कि तुम नहीं हो 
तुम्हारी याद तुम्हारे होने से कहीं ज्यादा गहरी है 

तुम साथ् होते तो 
चीजें  अच्छी  ही होतीं 
लेकिन 
गर तुम नहीं हो साथ् 
तब भी बेहतर ही होंगी बातें 
कि दोगुनी ताकत 
और कई गुणा हिम्मत, मेहनत 
और प्यार के साथ् 
बनाउंगी मैं उन्हें ऐसा 
कि जान सको तुम 
ठुकराया जिसे तुमने 
खोने के लायक 
नहीं था कुछ भी उसमें 



गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

१ . 
सच् होने लगते हैं ख्वाब

मैं कदम बढाती हूँ 
थोडा सा और आगे चली जाती हूँ 
मैं बाहें पसारती हूँ 
और सब कुछ सिमटता चला आता है करीब 
मैं निगाह उठाती हूँ 
और उडने लगती हूँ 
मैं ख्वाब देखती हूँ 
और सच् होने लगते हैं वे 
  
२. 
रिश्तों के नाम 
ज़रूरी तो नहीं के सब चीजों के नाम हुआ ही करें 
बहुत सारी चीजें बातें बिना नाम के भी होती हैं 
मह्सूसियत की तरह  
जैसे हर सुबह का नहीं होता अलग अलग नाम 
लेकिन हर सुबह होती है अलग हर दूसरी सुबह से 

३. 
यह दुनिया
यह दुनिया जैसी भी बन पाई है 
किसी एक अकेले कारीगर की कारस्तानी से नही बनी है 
हम सभी के पुरखों ने किया है अपनी अपनी तरह से योगदान 

हमारे कंधों पर सदियों का संचित बोझ है 
सदियों का संचित ज्ञान है हमारी झोली मैं 
सदियों के संचित रिश्तों ने गढा है हमे 
अच्छा या कम अच्छा जैसा भी 

यह जिद बेमानी है के रातो रात बदल देंगे हम इसकी शक्लो सूरत 
जितनी भी आजादी और जितने भी बन्धन आए है हमारी झोली में 
सबका है अपना इतिहास