बुधवार, 28 नवंबर 2012

जन्म की कथा

माँ बताती थी 
आसमान से घर की बाखर में गिरी थी मैं 
ऐन माँ की आँखों के सामने 
और उन्होंने गोद में उठा लिया था मुझे 

जन्म की कथा तो माँ ही जानती हैं 
कितने ही आसमानों से गिरी हूँ जाने कितनी बार 
माँ ने हर बार भर लिया बाँहों में 
दिया दुलार 
मेरे लिए यह दुनिया 
घर की बाखर है 
जिसमे लगाती हूँ दौड़ निःसंकोच 
खेलती हूँ, हंसती हूँ गाती हूँ 
आसमान को छूने की जिद ठाने हूँ 
पिता सीढी ले आते हैं 
माँ साया बन साथ रहती है