जबकि जरूरत थी जागने की
कहा गया
सो जाओ अब
रात बहुत हो चुकी है
रात है कि तबसे गहराती जा रही है
रात के अकेले पहरेदार की लाठी
हो चुकी जर्जर
गला भर्रा गया है
सीटी अब चीखती नहीं
कराहती है महज
कवि कलाकार
श्रेष्ठता की चर्चा में रत
निकृष्टतम मुहावरों की होड जारी है
गालियों का शब्दकोष रचा जा रहा
इंटरनेट और अखबारों में
जनआंदोलनों में अब भागीदारी
लाइक, शेयर और कमेंट में सिमटी जा रही
नींद से बोझिल पलकें
आखिरी जाम
आखिरी कमेंट
इसी बीच
तमाम नए स्टेटस अपडेट
मुंबई में पत्रकार से बलात्कार
रुपया है कि लुढकता जा रहा
एक लंपट संत का कुकर्म
प्रमाण नहीं
प्रमाण नहीं
शर्म से झुका जा रहा मस्तक
आत्मा पर कुलबुलाता है
बेबसी का कीडा
रात है कि गहराती जा रही
नींद दूर तक कहीं नहीं
और जगाने को कोई अलख भी नहीं