पानी से भरी लबालब झील से
बारिश की सुबह
जंगल की तरफ खुली खिड़की से
मैं देखती हूँ अपना लौटना
दरवाज़े को धडाम से बंद करना
सांकल चढ़ाना
और थक कर लुढ़क जाना
बिस्तर पे
एक समय के बाद
आंसू और सिसकियाँ भी
साथ नहीं देते
मैं अपने शून्य में लौट आती हूँ